Wednesday, 21 October 2015

जो प्यार ,
जो ख़ुशी अपनों के बीच रहकर,
उस छोटे से घर में ,
उस चार दिवारी में मिलती थी ,
वो ख़ुशी ,
वो शांति ,
वो सुकून ,
वो अपनापन ,
आज बड़े से महल में रहकर भी नहीं मिलती ....
हाय !
नियति का खेल तो देखो आज सब कुछ है फिर भी मेरे दोनों हाथ खाली हैं ,
पीछे देखूं तो अपना कहने वाला कोई भी नहीं ...
निर्जीव से आज ये शरीर लग रहा
अपनों के बिना मेरा अस्तित्व आज मिट चला...


Ramjheetun Karishma (Diya)

Blog: diyasansaar.blogspot.com 

No comments:

Post a Comment

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को थप्पड़

  यह वाकया मंगलवार 8 जून 2021 को फ़्रांस के दक्षिण-पूर्वी इलाके में हुआ जब फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों एक आधिकारिक दौरे पर थे ।...